शनिवार, 17 मई 2008

चंग लाइन

चंग लाइने आपकी सेवा मे मुझसे जो बुन पड़ी आपको सुनाता हूँ "कि निकले हम घर से और राहों पे चल दिए , टू राहगीर भी हमे देखकर अपनी रह बदल लिए .था इक वक्त जब चाँद भी हमे निहारा करता था , और अब टू ये सितारे भी हमसे मुह मोड़ के निकल लिए ." @आपका अखिल@

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